एक बार एक बकरी जंगल में घूम रही थी। तभी कुछ शिकारी कुत्ते उस के पीछे लग गये । बकरी जान बचाकर अंगूरों की झाड़ी में घुस गयी। कुत्ते आगे निकल गए।
बकरी ने चैन की साँस ली और निश्चिंतापूर्वक अँगूर की बेले खानी शुरु कर दी, और जमीन से लेकर अपनी गर्दन पहुँचे उतनी दूरी तक के सारे पत्ते खा लिए।
पत्ते झाड़ी में नहीं रहे। छिपने का सहारा समाप्त् हो जाने पर कुत्तों ने उसे देख लिया और मार डाला !! सहारा देने वाले को जो नष्ट करता है, उसकी ऐसी ही दुर्गति होती है।
मनुष्य भी आज सहारा देने वाली जीवनदायिनी नदियां, पेड़-पौधों, जानवर, पक्षियों, पर्वतों आदि को नुकसान पंहुचा रहा है और इन सभी का परिणाम भी अनेक आपदाओं के रूप में भोग रहा है। प्राकृतिक संपदाओं का योजनाबद्ध और विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए तो उनसे अधिक दिनों तक लाभ उठाया जा सकता है तथा वे भविष्य के लिये संरक्षित रह सकती हैं।संरक्षण का यह अर्थ कदापि नहीं कि,1. प्राकृतिक साधनों का प्रयोग न कर उनकी रक्षा की जाए या2. उनके उपयोग में कंजूसी की जाए या3. उनकी आवश्यकता के बावजूद उन्हें बचाकर भविष्य के लिये रखा जाए।वरन, संरक्षण से हमारा तात्पर्य है कि संसाधनों या संपदाओं का अधिकाधिक समय तक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उपयोग।प्राकृतिक सम्पदा बचाओ अपना कल सुरक्षित करो।