एक बार की बात है। एक दुर्गम पहाड़ पर एक किसान रहता था। उस दुर्गम पहाड़ पर आये दिन आंधी-तूफ़ान आते रहते थे। वह अकेला ही सारा काम संभालता। उचित पगार देने पर भी कोई मदद के लिए नहीं मिलता था।
अंततः एक सामान्य कद का पतला-दुबला अधेड़ व्यक्ति किसान के पास पहुंचा। किसान ने उससे पूछा “क्या तुम इन परिस्थितयों में काम कर सकते हो ?”
“हाँ, बस जब हवा चलती है तब मैं सोता हूँ।” व्यक्ति ने उत्तर दिया।
किसान को उसका उत्तर थोड़ा अजीब लगा लेकिन चूँकि उसे कोई और काम करने वाला नहीं मिल रहा था इसलिए उसने व्यक्ति को काम पर रख लिया।
मजदूर मेहनती निकला। वह सुबह से शाम तक खेतों में मेहनत करता। किसान भी उससे काफी संतुष्ट था।
कुछ ही दिन बीते थे कि एक रात अचानक ही जोर-जोर से हवा बहने लगी। किसान अपने अनुभव से समझ गया कि अब तूफ़ान आने वाला है। वह तेजी से उठा, हाथ में लालटेन ली और मजदूर के झोपड़े की तरफ दौड़ा।
“जल्दी उठो ! देखते नहीं तूफ़ान आने वाला है !! इससे पहले की सबकुछ तबाह हो जाए कटी फसलों को बाँध कर ढक दो और बाड़े के गेट को भी रस्सियों से कस दो।” किसान चीखा।
मजदूर बड़े आराम से पलटा और बोला, “नहीं जनाब, मैंने आपसे पहले ही कहा था कि जब हवा चलती है तो मैं सोता हूँ !!!”
यह सुन किसान का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। जी में आया कि उस मजदूर को पिटाई कर दे, पर अभी वो आने वाले तूफ़ान से चीजों को बचाने के लिए भागा।
किसान खेत में पहुंचा और उसकी आँखें आश्चर्य से खुली रह गयी। फसल की गांठें अच्छे से बंधी हुई थीं और तिरपाल से ढकी भी थी। उसके गाय-बैल सुरक्षित बंधे हुए थे। बाड़े का दरवाज़ा भी मजबूती से बंधा हुआ था। सारी चीजें बिलकुल व्यवस्थित थी और नुकसान होने की कोई संभावना नहीं बची थी। किसान अब मजदूर की ये बात कि 'जब हवा चलती है तब मैं सोता हूँ' समझ चुका था, और अब वो भी चैन से सो सकता था।
मित्रों, हमारी ज़िन्दगी में भी कुछ ऐसे तूफ़ान आने तय हैं। ज़रुरत इस बात की है कि हम उस मजदूर की तरह पहले से तैयारी कर के रखें ताकि मुसीबत आने पर हम भी चैन से सो सकें। जैसे कि यदि कोई विद्यार्थी शुरू से पढ़ाई करे तो परीक्षा के समय वह आराम से रह सकता है। हर महीने बचत करने वाला व्यक्ति पैसे की ज़रुरत पड़ने पर निश्चिंत रह सकता है, इत्यादि।तो चलिए हम भी कुछ ऐसा करें कि कह सकें – ”जब हवा चलती है तो मैं सोता हूँ।”