एक
रेलवे स्टेशन पर नौजवान लड़का उतरा। लड़के के पास एक छोटा सा संदूक था। स्टेशन पर
उतरते ही लड़के ने कुली को आवाज लगानी शुरू कर दी। वह एक छोटा स्टेशन था, जहाँ पर ज्यादा लोग नहीं उतरते थे, इसलिए वहाँ उस स्टेशन पर कुली नहीं थे। इतने में
विद्यासागर जी अपनी सामान्य वेश भूषा में लड़के के पास से गुजरा। लड़के ने उन्हें
ही कुली समझा और सामान उठाने के लिए कहा। उन्होंने ने भी चुपचाप सन्दूक उठाया और
आधुनिक नौजवान के पीछे चल पड़ा। घर पहुँचकर नौजवान ने उन्हें पैसे देने चाहे। पर
उनने पैसे लेने से साफ इनकार कर दिया और नौजवान से कहा—‘‘धन्यवाद ! पैसों की मुझे
जरूरत नहीं है, फिर भी अगर तुम देना चाहते हो, तो एक वचन दो कि आगे से तुम अपना सारा काम अपने हाथों
ही करोगे।
अगले दिन सुबह प्रार्थना में उस विद्यार्थी ने देखा की मंच पर आसीन
वहीँ व्यक्ति है जिसने कल उसका बैग उठाया था वह बड़ा शर्मिंदा हुआ तथा प्रार्थना के
बाद उनके चरणों में गिर कर उनसे माफ़ी मांगी उन्होंने बड़े प्यार से उसे कहा मेरे
भारतवासी अहंकाररहित हो, स्वावलम्बी हो, और डिग्री का
अभिमान ना करे. बेटा अपना काम अपने आप करने पर ही हम स्वावलम्बी बनेंगे और जिस देश
का नौजवान स्वावलम्बी नहीं हो, वह देश कभी सुखी और समृद्धिशाली नहीं
हो सकता।’’ इतनी सादगी से उस विद्यार्थी को सीख सीखना तथा जीवन भर के लिए उसका
हृदय परिवर्तन करना उन महामानव के लिए ही संभव था।