एक बार डॉ कलाम ने अपने 50 रिश्तेदारों को दिल्ली आने का
निमंत्रण दिया और वे सभी राष्ट्रपति भवन में रुके। उन्होंने शहर के चारों ओर ले
जाने के लिए एक बस का आयोजन किया जिसका भुगतान उन्होंने स्वयं किया, कोई
सरकारी कार का इस्तेमाल नहीं किया गया था। उनके सभी रहने और खाने की व्यवस्था डॉ।
कलाम के निर्देश के अनुसार की गई और बिल 2 लाख रुपये का आया, जिसका
भी उन्होंने भुगतान किया। इस देश के इतिहास में ऐसा कभी किसी ने नहीं किया था । हद
तो तब हुई जब, डॉ. कलाम के बड़े भाई पूरे एक सप्ताह तक उनके कमरे में उनके साथ रहे तब,
डॉ.
कलाम उस कमरे का किराया भी देना चाहते थे।
मिस्टर अब्दुल कलाम सौभाग्य एंटरप्राइजेज (गीला पिसाई मशीन के नामचीन
निर्माता) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेने इरोड पहुंचे। कार्यक्रम खत्म
होने के बाद, कलाम जी को पिसाई मशीन उपहार स्वरूप मिली। कलाम जी को अपने घर के लिए
यही मशीन कि आवश्यकता थी पर उन्होंने उसे उपहार स्वरूप लेने से मना कर दिया तथा
सौभाग्य एंटरप्राइजेज के नाम का 4850/- रुपए का एक चेक बना दिया।
कंपनी और उसके मुख्य प्रबंधक को उनकी यह महानता से गद्गद हो उठे और
उन्होंने चेक को कैश कराने की जगह उसे अपने ऑफिस में फ्रेम करके रख लिया। 2
महीने बाद, कलाम जी के ऑफिस से उन्हें फोन आया कि वे उस चेक को जल्द ही कैश करा
लें नहीं तो कलाम जी उस मशीन को वापस कर देंगे। और कोई रास्ता ना होने पर कंपनी ने
वो चेक की फोटोकॉपी करा के उसे कैश करा लिया।
इस प्रसंग से आप बहुत सारी शिक्षा के सकते हैं जैसे की:
कलाम जी की याददाश्त और व्यावहारिकता (दो महीने पहले दिए गए चेक को कौन याद रखता है)
वो कितने सरल और यथार्थवादी थे
पर इस महान व्यक्तित्व से सबसे बड़ी सीख यह ली जा सकती है कि वे अपने जीवन में कुछ भी मुफ्त का नहीं चाहते थे बल्कि सब कुछ अपनी हैसियत अनुसार कमाना चाहते थे। उनके जीवन का मूल मंत्र था "परिश्रम ही सफलता की कुंजी है"। इसलिए चाहे राष्ट्रपति बनना हो या एक पिसाई मशीन खरीदनी हो, वो सब कुछ अपनी शर्तों पर ही करना चाहते थे।