जंगल का राजा शेर, अब बूढ़ा हो गया है। वह अब इतना तेज और चुस्त नहीं रहा जितना कि वह अपनी छोटी उम्र में था।
एक बार वह जंगल में भटक रहा था। उसने दो दिनों से खाना नहीं खाया था। वह बेहद भूखा था। भटकते हुए उसने एक गुफा देखी और वह अंदर चला गया।
राजा ने सोचा कि वह गुफा के अंदर छिप जाएगा और जैसे ही गुफा का मालिक आएगा, वह उसे खा जाएगा। कुछ घंटों के बाद लोमड़ी, गुफा के बाहर आ गई। गुफा उसी की थी। जब वह प्रवेश करने वाली थी, उसने देखा कि शेर के पैरों के निशान गुफा में प्रवेश कर रहे हैं। लेकिन वही पैरों के निशान बाहर नहीं निकल रहे थे।
उसने जल्दी से स्थिति को समझा और चिल्लायी,
“ऐ मेरी बोलने वाली गुफा! मैं वापस आ गयी हूं। क्या आप मेरा स्वागत नहीं करोगी?”
कोई प्रतिक्रिया न मिलने पर, वह एक बार फिर चिल्लायी, “प्रिय गुफा, क्या तुम मुझसे परेशान हो? यदि आप बात नहीं करोगी, तो मैं अंदर नहीं आऊंगी।
यह सब सुनकर शेर ने सोचा कि यह गुफा बात करने वाली है और मेरे डर से जवाब नहीं दे रही है। तो, शेर खुद चिल्लाया,
"ओह मेरी प्यारी लोमड़ी। आप अंदर आ सकती हैं। यह आपका अपना घर है।"
लोमड़ी चालाक थी, उसे समझ आ गया कि शेर अंदर है। वह हंसीं और कभी अंदर नहीं गयी। जंगल का राजा उस दिन भोजन के रूप में लोमड़ी को प्राप्त नहीं कर सका। शेर ने महसूस किया कि यह सोचना बहुत बेवकूफी थी कि गुफा बात करेगी।
मित्रों जिस प्रकार ऋतु में परिवर्तन से गर्मी सर्दी व बरसात का मौसम आता है, ठीक उसी प्रकार हमारे जीवन में भी कभी ख़ुशी कभी गम तो कभी सामान्य परिस्थिति आती रहती है। परन्तु जो हर परिस्थितियों में अपना विवेक खोये बिना मन को सयंत रखते है उन्हें ही स्थाई सुख और सफलतायें मिलती है। इसलिए विपरीत परिस्थितियों में भी कभी अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए।