Babaloo Kee Sharaarat | भारत संस्कारों की जननी
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बबलू की शरारत

एक प्रेरणादायक कहानी

बबलू 10 वर्ष का बालक है। उसका जन्म नगर के एक धनाढ्य परिवार में हुआ था। वह नटखट शरारती था, पर मन का बहुत अच्छा था। घर में सभी उससे बहुत प्यार करते थे।


एक बार वह अपने दादा के साथ शाम को टहलने के लिए निकला। टहलते हुए वे एक फैक्ट्री के करीब पहुंचे। अंदर बहुत से मजदूर काम कर रहे थे। सभी ने अपने जूते फैक्ट्री के बाहर ही उतारे थे। यह देखकर बबलू को शरारत सूझी और उसने अपने दादा से कहा, 


"क्यों न मैं एक के जूते छुपा दूं? शाम हो गयी है वह लोग बाहर आते ही होंगे। अपने जूते ना मिलने पर परेशान होंगे, मज़ा आएगा।"


दादा ने गंभीरता से अपने पोते को देखा तथा कुछ सोचकर बोले "बबलू बेटा कुछ अलग करते हैं", ऐसा कहते हुए दादा पोते वहीँ पास में छुप गए।


शाम की घंटी बजी, एक एक करके सभी मजदूर आने लगे, तथा अपने अपने जूते पहनकर जाने लगे। एक मजदूर आया, उसके जूते सबसे पुराने व फटे थे। आज जैसे ही उसने अपना एक पाँव जूते में डाला उसे कुछ अजीब महसूस हुआ। देखा तो उसमें कुछ रूपए थे। उसके आश्चर्य का ठिकाना ना था। उसने आस पास सब तरफ देखा की आखिर यह रूपए कहाँ से आये पर उसे कोई नज़र नहीं आया। अब उसने दूसरा जूता उठाया उसमे भी रुपये थे। मजदूर को कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। रोते रोते वह वहीँ जमीन पर बैठ गया तथा हज़ारो बार भगवान का शुक्रिया करने लगा। बार बार कह रहा था,

"अब राजू को स्कूल से नहीं निकाला जायेगा।" 


उसकी ख़ुशी से ऐसा लग रहा था मानो कई दिनों से चल रहा संकट अब दूर हो गया हो।


बबलू की आंखें भी भर आयी। अब दादा उसे लेकर लौटने लगे। पूरे रास्ते बबलू की ख़ुशी का ठिकाना न था। वह बार बार मजदूर को याद करता और खूब खुश होता। वह समझ चुका था, किसी को परेशान करने से क्षणिक सुख मिलता है पर किसी की मदद से अपार संतोष मिलता है। 

मित्रों, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं। यह घर के बड़ों का कर्तव्य है की उन्हें सही राह दिखाए, उन्हें अच्छा करने की प्रेरणा दें तथा अच्छाई से मिलने वाले सुख का स्वाद चखाएं। देखिएगा जब उन्हें किसी के साथ अच्छा करने में मज़ा आने लगेगा तो कैसे उनका सम्पूर्ण जीवन ही बदल जायेगा।

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