Khel Bhavna | भारत संस्कारों की जननी
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खेल भावना


एक सड़क पर मक्खी मच्छर,

बैठ गये शतरंज खेलने।

थे सतर्क बिल्कुल चौकन्ने

इक दूजे के वार झेलने।


मक्खी ने जब चला सिपाही,

मच्छर ने घोड़ा दौड़ाया।

मक्खी ने चलकर वजीर को,

मच्छर का हाथी लुड़काया।


मच्छर ने गुस्से के मारे,

ऊँट चलाकर हमला बोला।

मक्खी ने मारा वजीर से,

ऊँट हो गया बम बम भोला।

ऊँट मरा जैसे मच्छर का,

वह गुस्से से लाल हो गया।

मक्खी बोली यह मच्छर तो,

अब जी का जंजाल हो गया।


मच्छर ने तलवार उठाकर,

मक्खीजी पर वार कर दिया।

मक्खी ने मच्छर का सीना,

चाकू लेकर पार कर दिया।


मच्छर औ मक्खी दोनोँ का,

पल में काम तमाम हो गया।

देख तमाशा रुके मुसाफिर,

सारा रास्ता जाम हो गया।


खेल हमेशा खेल भावना 

से मिलकर खेलो भाई,

खेल खेल में लड़ जाने से

होती बच्चो नहीं भलाई।

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