Kadak Thand Hai | भारत संस्कारों की जननी
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कड़क ठंड है


कितनी ज्यादा कड़क ठंड है,

करते सी-सी पापा।

दादा कहते शीत लहर है,

कैसे कटे बुढ़ापा।


बरफ पड़ेगी मम्मी कहतीं,

ओढ़ रजाई सोओ।

किसी बात की जिद मत करना,

अब बिलकुल ना रोओ।


किंतु घंटे दो घंटे में,

पापा चाय मंगाते।

बार बार मम्मीजी को ही,

बिस्तर से उठवाते।

दादा कहते गरम पकोड़े,

खाने का मन होता।

नाम पकोड़ों का सुनकर,

किस तरह भला मैं सोता।


दादी कहती पैर दुख रहे,

बेटा पैर दबाओ।

हाथ दबाकर मुन्ने राजा,

ढेर दुआएं पाओ।


शायद बने पकोड़े आगे,

मन में गणित लगाता।

दादी के हाथों पैरों को,

हँसकर खूब दबाता।

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