आई चिपक पसीने वाली,
गरमी मई की जून की।
चैन नहीं आता है मन को,
दिन बेचेनी वाले।
सल्लू का मन करता कूलर ,
खीसे में रखवाले।
बातें तो बस उसकी बातें ,
बातें अफलातून की।
दादी कहतीं सत्तू खाने ,
से जी ठंडा होता।
जिसने बचपन से खाया है,
तन मन चंगा होता।
खुद ले आतीं खुली पास में,
इक दूकान परचून की।
बोले पापा इस गरमी में ,
हम शिमला जाएंगे।
वहीं किसी भाड़े के घर में,
सब रहकर आयेंगे ।
मजे मजे बीतेगी सबकी ,
छुट्टी बड़े सुकून की ।