पापा गरमा गरम जलेबी,
लेकर आये हैं ।
मुनियाँ ने पहचानी उनके,
पैरों की आहट।
मम्मी के मुखड़े पर आ
मीठी मुस्काहट ।
दादा तो दरवाजे से ही,
आ पछियाए हैं ।
गंध मिली तो दादी जी का,
पत्ता मन डोला ।
ताक रहीं थीं गरम जलेबी,
वाला वह झोला ।
मुन्ना के हाथों संदेशे ,
दो भिजवाये हैं ।
गरम जलेबी मम्मी ने जब,
सबको खिलवाई ।
ऊपर चढ़ी सांस थी सबकी ,
तब नीचे आई ।
चेहरों पर खुशियों के परचम ,
अब लहराए हैं ।