Gappi | भारत संस्कारों की जननी
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गप्पी


सुबह सुबह से उठे रामजी,

पर्वत एक उठा लाये।

नदी पड़ी थी बीच सड़क पर,

उसे जेब में भर लाये।


फिर खजूर के एक पेड़ पर,

हाथी जी को चढ़वाया।

तीन गधों को तीन चीटियों,

से आपस में लड़वाया।


पानीपत के घोर समर में,

गधे हारकर घर भागे।

किन्तु चीटियों ने पकड़ा,

तो हाथ पैर कसकर बाँधे।

अपने इसी गधेपन से ही,

गधे गधे कहलाते हैं।

डील डौल इतना भारी पर,

चींटी से डर जाते हैं।


पूछा -गप्पी, इन बातों में,

क्या कुछ भी सच्चाई है।

बोले- गप्पी, मुझको तो,

बाबा ने बात बताई है।


बाबा के बाबा को भी तो,

उनके बाबा ने बोला।

इसी बात को सब पुरखों ने,

सबके कानों में घोला।


बाबा के बाबा के बाबा,

पक्के हिंदुस्तानी थे।

झूठ बोलना कभी न सीखा,

वे सच के अनुगामी थे।

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गप्पी
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