Barr Aur Baalak | भारत संस्कारों की जननी
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बर्र और बालक


सो रहा था बर्र एक कहीं एक फूल पर,

चुपचाप आके एक बालक ने छू दिया


बर्र का स्वभाव,हाथ लगते है उसने तो,

ऊँगली में डंक मार कर बहा लहू दिया


छोटे जीव में भी यहाँ विष की नही कमी है,

टीस से विकल शिशु चीख मार,रो उठा


रोटी को तवे में छोड़ बाहर की और दौड़ी,

रोना सुन माता का ह्रदय अधीर हो उठा

ऊँगली को आँचल से पोछ-तांछ माता बोली,

मेरे प्यारे लाल!यह औचक ही क्या हुआ?


शिशु बोला,काट लिया मुझे एक बर्र ने है,

माता !बस,प्यार से ही मैंने था उसे छूआ


माता बोली,लाल मेरे,खलों का स्वभाव यही,

काटते हैं कोमल को,डरते कठोर से


काटा बर्र ने कि तूने प्यार से छुआ था उसे,

काटता नही जो दबा देता जरा जोर से

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बर्र और बालक
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