Amar Aag Hai | भारत संस्कारों की जननी
Follow Us         

अमर आग है


कोटि-कोटि आकुल हृदयों में

सुलग रही है जो चिनगारी,

अमर आग है, अमर आग है।


उत्तर दिशि में अजित दुर्ग सा,

जागरूक प्रहरी युग-युग का,

मूर्तिमन्त स्थैर्य, धीरता की प्रतिमा सा,

अटल अडिग नगपति विशाल है।



नभ की छाती को छूता सा,

कीर्ति-पुंज सा,

दिव्य दीपकों के प्रकाश में-

झिलमिल झिलमिल

ज्योतित मां का पूज्य भाल है।


कौन कह रहा उसे हिमालय?

वह तो हिमावृत्त ज्वालागिरि,

अणु-अणु, कण-कण, गह्वर-कन्दर,

गुंजित ध्वनित कर रहा अब तक

डिम-डिम डमरू का भैरव स्वर ।

गौरीशंकर के गिरि गह्वर

शैल-शिखर, निर्झर, वन-उपवन,

तरु तृण दीपित ।


शंकर के तीसरे नयन की-

प्रलय-वह्नि से जगमग ज्योतित।

जिसको छू कर,

क्षण भर ही में

काम रह गया था मुट्ठी भर ।


यही आग ले प्रतिदिन प्राची

अपना अरुण सुहाग सजाती,

और प्रखर दिनकर की,

कंचन काया,

इसी आग में पल कर

निशि-निशि, दिन-दिन,

जल-जल, प्रतिपल,

सृष्टि-प्रलय-पर्यन्त तमावृत

जगती को रास्ता दिखाती।


यही आग ले हिन्द महासागर की

छाती है धधकाती।

लहर-लहर प्रज्वाल लपट बन

पूर्व-पश्चिमी घाटों को छू,

सदियों की हतभाग्य निशा में

सोये शिलाखण्ड सुलगाती।


नयन-नयन में यही आग ले,

कंठ-कंठ में प्रलय-राग ले,

अब तक हिन्दुस्तान जिया है।


इसी आग की दिव्य विभा में,

सप्त-सिंधु के कल कछार पर,

सुर-सरिता की धवल धार पर

तीर-तटों पर,

पर्णकुटी में, पर्णासन पर,

कोटि-कोटि ऋषियों-मुनियों ने

दिव्य ज्ञान का सोम पिया था।

जिसका कुछ उच्छिष्ट मात्र

बर्बर पश्चिम ने,

दया दान सा,

निज जीवन को सफल मान कर,

कर पसार कर,

सिर-आंखों पर धार लिया था।


वेद-वेद के मंत्र-मंत्र में,

मंत्र-मंत्र की पंक्ति-पंक्ति में,

पंक्ति-पंक्ति के शब्द-शब्द में,

शब्द-शब्द के अक्षर स्वर में,

दिव्य ज्ञान-आलोक प्रदीपित,

सत्यं, शिवं, सुन्दरं शोभित,

कपिल, कणाद और जैमिनि की

स्वानुभूति का अमर प्रकाशन,

विशद-विवेचन, प्रत्यालोचन,

ब्रह्म, जगत, माया का दर्शन ।

कोटि-कोटि कंठों में गूँजा

जो अति मंगलमय स्वर्गिक स्वर,

अमर राग है, अमर राग है।


कोटि-कोटि आकुल हृदयों में

सुलग रही है जो चिनगारी

अमर आग है, अमर आग है।


यही आग सरयू के तट पर

दशरथ जी के राजमहल में,

घन-समूह यें चल चपला सी,

प्रगट हुई, प्रज्वलित हुई थी।

दैत्य-दानवों के अधर्म से

पीड़ित पुण्यभूमि का जन-जन,

शंकित मन-मन,

त्रसित विप्र,

आकुल मुनिवर-गण,

बोल रही अधर्म की तूती

दुस्तर हुआ धर्म का पालन।


तब स्वदेश-रक्षार्थ देश का

सोया क्षत्रियत्व जागा था।

रोम-रोम में प्रगट हुई यह ज्वाला,

जिसने असुर जलाए,

देश बचाया,

वाल्मीकि ने जिसको गाया ।


चकाचौंध दुनिया ने देखी

सीता के सतीत्व की ज्वाला,

विश्व चकित रह गया देख कर

नारी की रक्षा-निमित्त जब

नर क्या वानर ने भी अपना,

महाकाल की बलि-वेदी पर,

अगणित हो कर

सस्मित हर्षित शीश चढ़ाया।


यही आग प्रज्वलित हुई थी-

यमुना की आकुल आहों से,

अत्यचार-प्रपीड़ित ब्रज के

अश्रु-सिंधु में बड़वानल, बन।

कौन सह सका माँ का क्रन्दन?


दीन देवकी ने कारा में,

सुलगाई थी यही आग जो

कृष्ण-रूप में फूट पड़ी थी।

जिसको छू कर,

मां के कर की कड़ियां,

पग की लड़ियां

चट-चट टूट पड़ी थीं।


पाँचजन्य का भैरव स्वर सुन,

तड़प उठा आक्रुद्ध सुदर्शन,

अर्जुन का गाण्डीव,

भीम की गदा,

धर्म का धर्म डट गया,

अमर भूमि में,

समर भूमि में,

धर्म भूमि में,

कर्म भूमि में,

गूँज उठी गीता की वाणी,

मंगलमय जन-जन कल्याणी।


अपढ़, अजान विश्व ने पाई

शीश झुकाकर एक धरोहर।

कौन दार्शनिक दे पाया है

अब तक ऐसा जीवन-दर्शन?


कालिन्दी के कल कछार पर

कृष्ण-कंठ से गूंजा जो स्वर

अमर राग है, अमर राग है।


कोटि-कोटि आकुल हृदयों में

सुलग रही है जो चिनगारी,

अमर आग है, अमर आग है।

आपको यह पोस्ट पसंद आया हो तो इस पेज को ज़रूर लाइक करें और नीचे दिए गए बटन दबा कर शेयर भी कर सकते हैं
अमर आग है
   442   0

अगला पोस्ट देखें
स्वतंत्रता दिवस की पुकार
   497   0

Comments

Write a Comment


Name*
Email
Write your Comment
अरुण यह मधुमय देश हमारा
- Jayshankar Prasad
   465   0
जम्मू की पुकार
- Atal Bihari Vajpayee
   855   0
स्वतंत्रता दिवस की पुकार
- Atal Bihari Vajpayee
   497   0
आओ रानी
- Nagarjun
   455   0
भारत महिमा
- Jayshankar Prasad
   500   0
कलम, आज उनकी जय बोल
- Ramdhari Singh Dinkar
   512   0
है नमन उनको
- Kumar Vishwas
   504   0
इसी देश में
- Prabhudayal Shrivastav
   562   0
वीरों का कैसा हो वसंत
- Subhadra Kumari Chauhan
   459   0
मेरा देश बड़ा गर्वीला
- Gopal Singh Nepali
   530   0
गोरा-बादल
- Narendra Mishra
   380   0
वीर तुम बढ़े चलो
- Dwarika Prasad Maheshwari
   465   0
कुबेर धन प्राप्ति मंत्र
- Anonymous
   1   0
By visitng this website your accept to our terms and privacy policy for using this website.
Copyright 2025 Bharat Sanskaron Ki Janani - All Rights Reserved. A product of Anukampa Infotech.
../