आवाज़ आ रही खटर पटर,
पिस रहे आम सिलबट्टे पर।
अमियों के टुकड़े टुकड़े कर,
मां ने सिल के ऊपर डाले।
धनियां मिरची भी कूद पड़े,
इस घोर युद्ध में, मतवाले।
फिर हरे पुदेने के पत्ते,
भी मां ने रण में झोंक दिये।
फिर बट्टे से सबको कुचला,
सीने में खंजर भोंक दिये।
मस्ती में चटनी पीस रही,
बैठी मां सन के फट्टे पर।
पिस रहे आम सिलबट्टे पर।
आमों की चटनी वैसे ही,
तो लोक लुभावन होती है।
दादा दादी बाबूजी को,
गंगा सी पावन दिखती है।
भाभी को यदि कहीं थोड़ी,
अमियों की चटनी मिल जाती।
तो चार रोटियों के बदले,
वह आठ रोटियां खा जाती।
भैया तो लगा लगा चटनी,
खाते रहते हैं भुट्टे पर।
पिस रहे आम सिलबट्टे पर।
चटनी की चाहत में एक दिन,,
सब छीना झपटी कर बैठे।
भैया भाभी दादा दादी,
चटनी पाने को लड़ बैठे।
छोटी दीदी ने छीन लिया,
भैया से चटनी का डोंगा,
इस खींचातानी में डोंगा,
धरती पर गिरा हुआ ओंधा।
चटनी दीदी पर उछल गई,
दिख रहे निशान दुपट्टे पर।
पिस रहे आम सिलबट्टे पर।