Aadhunik Betiyon Ka Anubhav Bana Bachchon Kee Seekh | भारत संस्कारों की जननी
Follow Us         

आधुनिक बेटियों का अनुभव बना बच्चों की सीख


बच्ची थी तब मैया मोरी 

मुझको नहीं सिखाया क्यूँ?

झटपट कैसे करती तू सब

मुझसे नहीं कराया क्यूँ?


छोटी थी तब नखरे करके 

तुझको बहुत थकाती थी 

फिर भी गुड़िया को अपनी तू

कितना लाड़ लड़ाती थी


चाट पकौड़ी गरम परांठे 

सब झट से बन जाता था

बनता कैसे इससे मेरा 

दूर कहीं ना नाता था


घर में कितना काम बढ़े

तू खुद ही सब निपटाती थी

मैं भी अपनी मस्ती में 

कब तेरा हाथ बँटाती थी


कोई मुझको टोके डाँटें

मुझको नहीं सुहाता था

बड़ा मज़ा आता जब आकर

कोई खूब मनाता था


ब्याह हुआ तो अपने घर को 

खुद ही मुझे सजाना था 

बहू, पत्नी, भाभी, माँ के

रिश्ते सभी निभाना था


कोई और करेगा इसका 

कोई नहीं बहाना था

याद तेरी करके अब मुझको

रोना ही तो आना था


पढ़ने लिखने सोशल मीडिया 

पर तो धाक जमा दी है

घर के काम करूँ बस कैसे 

यही समझ ना आती है

खाना नहीं पकाना मुझको

बाहर से मंगवाती हूँ

इससे तो फिर वजन बढ़ेगा

सोच सोच घबराती हूँ


मैया, खूब सुहाती रोटी

जिसको थी बनाती तू

स्वाद नहीं उस रोटी में

जो "Maid" से बनवाती हूँ


अन्न बनाता मन

हमारे ऋषियों की यह बानी है

स्वास्थ्य रहे परिवार जुड़े

हर घर की यही कहानी है


घर में सारे खुश हो जाते

हाथों से जब घर में पकता

तभी किसी ने सही कहा है

दिल तक जाता पेट का रास्ता


स्वास्थ्य के लिए हुआ ज़रूरी

जो भी खाओ घर का हो

स्वाद का तो ध्यान सभी को

संस्कार भी ध्यान दो


एक आँख से लाड़ करे तो

दूजी करती रहे सुधार

छोटे हो तब ही सिखला दें 

श्रम से जीतें सबका प्यार


सुख जीवन में पाएं सबसे 

कहते आशीर्वाद दो

आशीर्वाद छीन ले जाते

करते दिल से काम जो


अपने छोटे बच्चों को अब

ध्यान दे बतलाती हूँ 

करते कैसे झटपट दिल से

काम सब सिखलाती हूँ

आपको यह पोस्ट पसंद आया हो तो इस पेज को ज़रूर लाइक करें और नीचे दिए गए बटन दबा कर शेयर भी कर सकते हैं
आधुनिक बेटियों का अनुभव बना बच्चों की सीख
   655   0

अगला पोस्ट देखें
रक्षाबंधन की बहनों के लिए कविता
   639   0

Comments

Write a Comment


Name*
Email
Write your Comment
खेल भावना
- Prabhudayal Shrivastav
   556   0
चींटी बोली
- Prabhudayal Shrivastav
   562   0
कड़क ठंड है
- Prabhudayal Shrivastav
   540   0
चमकीले तारे
- Ayodhya Singh Upadhyay
   610   0
काला कौआ
- Harivansh Rai Bachchan
   582   0
आदत ज़रा सुधारो ना
- Prabhudayal Shrivastav
   554   0
गप्पी
- Prabhudayal Shrivastav
   622   0
कल के प्रश्न
- Prabhudayal Shrivastav
   543   0
औंदू बोला
- Prabhudayal Shrivastav
   582   0
चुहिया और संपादक‌
- Prabhudayal Shrivastav
   550   0
तितली से
- Mahadevi Verma
   733   0
रेल
- Harivansh Rai Bachchan
   568   0
कुबेर धन प्राप्ति मंत्र
- Anonymous
   1   0
By visitng this website your accept to our terms and privacy policy for using this website.
Copyright 2025 Bharat Sanskaron Ki Janani - All Rights Reserved. A product of Anukampa Infotech.
../