बच्ची थी तब मैया मोरी
मुझको नहीं सिखाया क्यूँ?
झटपट कैसे करती तू सब
मुझसे नहीं कराया क्यूँ?
छोटी थी तब नखरे करके
तुझको बहुत थकाती थी
फिर भी गुड़िया को अपनी तू
कितना लाड़ लड़ाती थी
चाट पकौड़ी गरम परांठे
सब झट से बन जाता था
बनता कैसे इससे मेरा
दूर कहीं ना नाता था
घर में कितना काम बढ़े
तू खुद ही सब निपटाती थी
मैं भी अपनी मस्ती में
कब तेरा हाथ बँटाती थी
कोई मुझको टोके डाँटें
मुझको नहीं सुहाता था
बड़ा मज़ा आता जब आकर
कोई खूब मनाता था
ब्याह हुआ तो अपने घर को
खुद ही मुझे सजाना था
बहू, पत्नी, भाभी, माँ के
रिश्ते सभी निभाना था
कोई और करेगा इसका
कोई नहीं बहाना था
याद तेरी करके अब मुझको
रोना ही तो आना था
पढ़ने लिखने सोशल मीडिया
पर तो धाक जमा दी है
घर के काम करूँ बस कैसे
यही समझ ना आती है
खाना नहीं पकाना मुझको
बाहर से मंगवाती हूँ
इससे तो फिर वजन बढ़ेगा
सोच सोच घबराती हूँ
मैया, खूब सुहाती रोटी
जिसको थी बनाती तू
स्वाद नहीं उस रोटी में
जो "Maid" से बनवाती हूँ
अन्न बनाता मन
हमारे ऋषियों की यह बानी है
स्वास्थ्य रहे परिवार जुड़े
हर घर की यही कहानी है
घर में सारे खुश हो जाते
हाथों से जब घर में पकता
तभी किसी ने सही कहा है
दिल तक जाता पेट का रास्ता
स्वास्थ्य के लिए हुआ ज़रूरी
जो भी खाओ घर का हो
स्वाद का तो ध्यान सभी को
संस्कार भी ध्यान दो
एक आँख से लाड़ करे तो
दूजी करती रहे सुधार
छोटे हो तब ही सिखला दें
श्रम से जीतें सबका प्यार
सुख जीवन में पाएं सबसे
कहते आशीर्वाद दो
आशीर्वाद छीन ले जाते
करते दिल से काम जो
अपने छोटे बच्चों को अब
ध्यान दे बतलाती हूँ
करते कैसे झटपट दिल से
काम सब सिखलाती हूँ