ज्योतिबा फुले जी का बचपन गरीबी, भेदभाव और अवसरों की कमी से भरा हुआ था। उनकी निम्न जाति की स्थिति के कारण उन्हें मंदिरों, स्कूलों या किसी भी सार्वजनिक स्थान पर प्रवेश करने तक की अनुमति नहीं थी। उनके माता-पिता स्थानीय जमींदारों के खेतों में मजदूरों के रूप में काम करते थे और दो वक्त की रोटी कमाने के लिए भी संघर्ष करते थे। इन चुनौतियों के बावजूद, फुले ने सीखने में गहरी रुचि दिखाई और वे अक्सर अपना खाली समय किताबें पढ़ने और अपने आसपास की दुनिया को देखने में बिताते थे।
महात्मा ज्योतिबा फुले का निधन 28 नवंबर, 1890 को 63 वर्ष की आयु में हुआ था, लेकिन उनकी विरासत भारत में सामाजिक कार्यकर्ताओं और सुधारकों की पीढ़ियों को प्रेरित करती रही है। सामाजिक न्याय, समानता और सभी के लिए शिक्षा के उनके विचार भारतीय सामाजिक और राजनीतिक संवाद का एक अभिन्न अंग बन गए हैं। फुले का जीवन और कार्य इस बात की याद दिलाता है कि सामूहिक कार्रवाई और संघर्ष के माध्यम से ही एक न्यायपूर्ण और समतामूलक समाज का निर्माण किया जा सकता है।